अभी 2 महीने पहले ही खबर आई थी कि भारत की आबादी स्थिर हो गई है। यह खबर भारत वासियों के लिए तो बहुत अच्छी थी लेकिन विदेशी ताकतों के लिए बहुत बुरी। भारत से गरीबी हटाने और भारत को विकसित मुल्क बनाने के लिए भारत को जनसंख्या घटाना बहुत जरूरी है। भारत की जनसंख्या बढ़ने से भारत और भारत वासियों को तो बहुत नुकसान होता ही है लेकिन विदेशी ताकतों और विदेशी कंपनियों को भारी मुनाफा होता है। आइए जानते हैं कि कैसे हिजाब विवाद भारत की घटती जनसंख्या के लिए हानिकारक है।
भारत की आबादी बढ़ाने के लिए हिजाब विवाद?
यदि आप दलगत राजनीति से ऊपर उठकर भारत की जनसंख्या के आंकड़ों को पढ़ेंगे तो आप समझेंगे कि हर धर्म और जाति में जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार घट रही है। शिक्षित महिलाएं इसके पीछे का सबसे बड़ी वजह हैं।
लड़कियों को स्कूल कॉलेज में हिजाब पहनने से रोके जाने पर यह संभव है कि वो स्कूल या कॉलेज जाएं ही नहीं। जब वो स्कूल जाएंगी ही नहीं तो संभव है कि उनकी शादी कम उम्र में ही हो जाएगी। ऐसा देखा गया है कि कम पढ़ी लिखी लड़कियों को कम पढ़े-लिखे लड़के ही मिलते हैं जिसके परिणाम स्वरूप ऐसे दंपत्ति परिवार नियोजन में विश्वास नहीं रखते। जब कोई माता-पिता परिवार नियोजन करेंगे ही नहीं तो उनके दो से ज्यादा बच्चे होंगे। यह भी संभव है कि वह लड़का और लड़की में भेदभाव करें। इससे होगा यह कि आने वाले वर्षों में भारत की आबादी दोबारा बढ़ने लगेगी जिसके परिणाम स्वरूप भारत के संसाधनों पर बोझ पड़ेगा। इसीलिए हम पूछते हैं कि कहीं हिजाब विवाद तो किसी विदेशी ताकत की साजिश तो नहीं? इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी ही चाहिए।
विदेशी कपड़ों को बढ़ावा देना है मकसद?
हिजाब विवाद का एक पहलू और है। आप अपने आसपास भी देख सकते हैं कि जो बच्चे अपनी पारंपरिक पोशाक नहीं पहनते वह विदेशी कपड़े पहनते हैं। विदेशी कपड़े ना सिर्फ विदेशों से डिजाइन किए जाते हैं बल्कि इनकी फैक्ट्रियां भी विदेशों में है। भारत में मिल रहे बहुत से विदेशी ब्रांड के कपड़े चीन और बांग्लादेश में बनाए जाते हैं। इससे ना सिर्फ भारत के कपड़ा उद्योग को फर्क पड़ता है बल्कि इसका असर भारत के किसानों और दर्जियों पर भी पड़ता है। हिजाब विवाद के पीछे का मकसद कहीं भारत में विदेशी कपड़ों को बढ़ावा देना तो नहीं है?
भारतीय संस्कृति पर हो रहा प्रहार?
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की मुस्लिम शाखा ने पर्दा प्रथा को भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताया है। इससे यह सवाल भी उठता है कि कहीं हिजाब के बहाने घुंघट को निशाना तो नहीं बनाया जा रहा?
भारत की एक पुरानी कहावत है:
"भक्ति, भोजन, तिज़ोरी और नारी
चारों परदे के अधिकारी"
इसका अर्थ है कि हमें अपने भोजन, अपनी भक्ति, अपने धन और अपने घर की बहू बेटियों को दुनिया की नजरों से छिपा कर रखना चाहिए। भले ही आज के कलयुग में यह भारत के शहरों में संभव ना हो लेकिन आज भी देश के कई राज्यों में घुंघट प्रथा चल रही है। भारत में बहू बेटियों को घर की इज्जत समझा जाता है, कहीं इसी इज्जत को कम करने कि कोई साजिश तो नहीं हो रही है इस हिजाब विवाद से? क्या हिजाब विवाद का निशाना किसी धर्म की बजाए भारत की संस्कृति तो नहीं?
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