जन्मदिन से नेतागिरी में कमीशनखोरी दो प्रकार से शुरू होती है। पहली है खुद के जन्मदिन के लिए और दूसरी अन्य नेता के जन्मदिन के लिए। पहले बात करते हैं खुद जन्मदिन के लिए कैसे नेताजी बनते हैं कमीशनखोर।
खुद के जन्मदिन के लिए कमीशनखोरी?
शुरुआत होती है पद पाने से
जब कोई व्यक्ति किसी राजनितिक संगठन में किसी पद पर नियुक्त होता है तो उसे लोगों को बताने के लिए कुछ बड़ा करना पड़ता है। अख़बार में दी गई ख़बर से काम नहीं चलता। ऐसा बड़ा मौका होता है उस व्यक्ति का जन्मदिन। अपने जन्मदिन पर वो अपने क्षेत्र के लोगों को बताना चाहता है कि वो किस राजनितिक संगठन में किस पद पर स्थापित है।
अख़बार में विज्ञापन और शहर में बैनर होर्डिंग पर होता है खर्चा
नवनियुक्त नेताजी को अपने जन्मदिन पर खुद ही अख़बारों में विज्ञापन और शहर में बैनर होर्डिंग पर पैसा खर्च करना पड़ता है भले ही बैनर और विज्ञापन में ऐसा दर्शाया जाता है कि नेताजी को उनके दोस्तों और चाहने वालों ने जन्मदिन की बधाई दी है। बैनर होर्डिंग का खर्च रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग - भिलाई में 2 लाख रूपये से भी ऊपर पहुँच जाता है जबकि कोरबा, राजनांदगांव, रायगढ़ में 70 हज़ार रूपये से 1 लाख रूपये तक खर्च हो जाते हैं। नगर पंचायतों में ये खर्च 30 हज़ार रूपये के आस पास होता है।
अख़बारों में विज्ञापन का खर्च इसमें शामिल नहीं है।
खर्चे की रिकवरी करने के लिए शुरू होती है कमीशनखोरी
राजनितिक पार्टियां किसी भी सदस्य को वेतन नहीं देतीं, हां जो पदाधिकारी राजनितिक पार्टी के लिए कार्य करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए आर्थिक रूप से संम्पन्न नहीं होते उनको रेल या हवाई टिकट प्रदान की जाती है। जब राजनितिक पार्टी के लिए कार्य करने में पैसा खुद ही खर्च करना है, तो कुछ लोग इस पैसे की रिकवरी करने के बारे में सोचते हैं। ऐसे लोग अपने पद का दुरूपयोग करते हुए और शासन - प्रशासन में अपनी पहुंच और जान पहचान को इस्तेमाल करते हुए कुछ ऐसा करने का प्रयास करते हैं कि जिससे इन्हे आर्थिक लाभ हो सके। आपने अक्सर ख़बरों में पढ़ा - सुना होगा कि किसी संस्था में चपड़ासी भर्ती में हुआ पैसों का लेनदेन, या किसी नेता ने सरकारी नौकरी लगवाने के लिए की युवक से पैसों की मांग।
ये सब इसी लिए किया जाता है क्योंकि जनता के बीच अपना नाम चमकाने के लिए नेताओं को आर्थिक त्याग देना पड़ता है जिसमे जन्मदिन का खर्च भी शामिल है।
अन्य नेता जी के जन्मदिन के लिए कमीशनखोरी?
जब आपके शहर के किसी बड़े नेता जी का जन्मदिन आता है तो उनको जन्मदिन की बधाई देने के लिए पुरे शहर में बैनर पोस्टर लग जाते हैं। इनपर खर्च नेता जी खुद नहीं करते क्योंकि उनका नाम, पद और कद इतना बड़ा हो गया होता है कि उनको अब अपने जन्मदिन से कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में ये काम वो लोग करते हैं जो अपने आप को नेता जी का ख़ास बताना चाहते हैं। ऐसा करने से नेता जी उनसे प्रसन्न हो जाते हैं और मुसीबत में उनके काम आते हैं। अब बात फिर खर्चे की आती है। ऐसे में ये लोग नेता का नाम इस्तेमाल करके जनता के काम करवाते हैं और बदले में जनता से आर्थिक वसूली या कमीशनखोरी करते हैं।
भ्रष्टाचार के लिए भी जन्मदिन ज़िम्मेदार?
यहाँ तक पढ़कर आपको लग रहा होगा कि जन्मदिन के बनेर पोस्टर केवल कमीशनखोरी के लिए शामिल हैं, जबकि यही बैनर कभी कभी भ्रष्टाचार के लिए भी ज़िम्मेदार हैं। तो किस्सा है एक व्यक्ति के जन्मदिन का। व्यक्ति एक संवैधानिक पद पर बैठा था। उसका जन्मदिन था। उसका एक चेला उसके लिए शहर में 2-3 बैनर लगवाना चाहता तथा लेकिन पैसे खर्च करना नहीं चाहता था। तो उस व्यक्ति ने नेताजी के कार्यालय में फ़ोन किया और बैनर लगाने की इच्छा जताई और आर्थिक सहयोग के लिए भी मांग रखी। कार्यालय ने उस व्यक्ति को एक प्रशासनिक अधिकारी से बात करने को कहा। उस व्यक्ति ने उस सरकारी अधिकारी से बात की और बैनर वाली दुकान का नाम और नंबर दिया। अगले दिन उस व्यक्ति के 2 बैनर नेताजी को जन्मदिन की बधाई देते हुए शहर के मुख्य स्थानों पर लगे हुए थे।
अब सोचने वाली बात है कि उस सरकारी अधिकारी का नेताजी से क्या रिश्ता है? वो तो आज इस शहर में है कल किसी और शहर में होगा। लेकिन उसे भी पता है कि हमारे प्रदेश और देश का सिस्टम लगभग सब जगह एक जैसा है। अब ऐसे न जाने कितने नेताजी के जन्मदिन और स्वागत के बैनर का खर्च सरकारी अधिकारी देते होंगे। वो भी अपने वेतन से तो नेताजी को जन्मदिन की बढ़ी देते नहीं होंगे? तो वो ऐसे सब खर्चों के लिए जनता को निशाना बनाते हैं। जनता के काम करने के लिए, जिसके लिए उन्हें सरकार वेतन देती है, वो जनता से ही पैसों की मांग करते हैं जिसे हम भ्रष्टाचार कहते हैं।
स्वागत में भी यही कहानी?
आपने अक्सर अपने शहर में देखा होगा कि जब किसी राजनितिक पार्टी का कोई बड़ा नेता आपके शहर में आते हैं तो पुरे शहर में उनके स्वागत के लिए शहर के अलग अलग नेताओं के बैनर पोस्टर लग जाते हैं। इन बैनर पोस्टरों का खर्च भी या तो कमीशनखोरी या भ्रष्टाचार से ही आता होगा। हम नहीं कह रहे कि सब लोग ऐसा करते होंगे। जिनके पास लाखों करोड़ों की आय है उनके लिए हज़ारों का खर्च मायने नहीं रखता होगा। लेकिन जो इस खेल में नए आये हैं उनके ईमान का इम्तेहान लेने का कोई तरीका नहीं है।
पढ़िए कि कैसे कमिशनखोरी का रास्ता जन्मदिन से होकर गुज़रता है।
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