बेनामी गाड़ियों में क्यों सफ़र करते हैं विधायक टिकट के प्रत्याशी और उनके बाल-बच्चे?



आप अपने क्षेत्र के अख़बारों में विधायक टिकट के प्रत्याशियों के नाम पढ़ते होंगे। ये अधिकतर वही लोग हैं जिनकी पिछले पौने पांच सालों में सरकार में 'चली' है। इनमे से ज़्यादातर ने पिछले पौने पांच सालों में अपनी संपत्ति पौने पांच गुनाह बढ़ा ली है। पिछले चुनाव से पहले जिनकी बोलेरो स्कार्पियो का राजधानी तक जाने का भी भरोसा नहीं होता था, वो आज इनोवा में लाल प्लेट लगाकर हूटर बजाते घूम रहे हैं। लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी कि इन प्रत्याशियों की गाड़ियां इनके नाम पर नहीं हैं। कई प्रत्याशी और उनके बाल बच्चे 'बेनामी गाड़ियों' में घूम रहे हैं।

पार्टनर के नाम खरीदते हैं गाड़ी

पिछले पौने पांच सालों में इन प्रत्याशियों ने बहुत से 'व्यापारिक' संबंध बनाए हैं। किसी ने ट्रांसफर पोस्टिंग से पैसे बनाये हैं तो किसी ने निर्माण कार्यों में कमिशन लेकर तरक्की की है तो किसी ने अवैध मुरुम खदानें चलाई हैं। ऐसे सभी प्रत्याशी अपने पार्टनर के नाम से गाड़ियां निकलवाते हैं।

टिकट मिल गई तो शपथपत्र में देने होगा ब्योरा

ऐसे सभी प्रत्याशियों को सरकार आते ही पता चल गया था कि इन्हीं पांच सालों में आर्थिक तौर पर आगे बढ़ना है ताकि अगले चुनाव में दावेदारी कर सकें। इनको ये भी पता था कि यदि टिकट मिल गयी तो शपथपत्र में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना होगा। यदि प्रत्याशी करोडपति हो तो जनता पर अलग प्रभाव पड़ता है और लखपति होने पर अलग प्रभाव पड़ता है। इसी लिए कई प्रत्याशियों ने गाड़ियां, राजधानी में फ्लैट और प्लाट, सीमावर्ती क्षेत्रों में सैंकड़ो एकड़ ज़मीन दूसरे लोगों के नाम पर ख़रीदी है। 

कार्यकर्ताओं की नजरों में दिखना चाहते हैं अमीर लेकिन इनकम टैक्स के कागज़ों में रहना चाहते हैं गरीब

ऐसे प्रत्याशियों में एक सामान्य गुण देखा गया है। ये सभी लोग इनकम टैक्स और ई.डी. की नज़रों में गरीब दिखना चाहते हैं और कार्यकर्ताओं की नज़रों में अमीर दिखना चाहते हैं। इनोवा और फॉर्चूनर ख़रीदने के लिए ये कानूनी तौर पर योग्य नहीं हैं लेकिन कार्यकर्ताओं के सामने बड़ी गाड़ी ज़रूरी है क्योंकि इससे कार्यकर्ता सोचते हैं कि यदि भैया पौने पांच सालों में 50 लाख की गाडी खरीद सकते हैं तो हम इनके साथ जुड़कर अगले पौने पांच सालों में आठ - दस लाख की गाडी तो खरीद ही लेंगे।

बाल-बच्चों के लिए भी बेनामी इनोवा

प्रदेश में कुछ प्रत्याशी तो ऐसे हैं जिन्होंने अपने बाल-बच्चों को भी दलगत राजनीती में उतार दिया है और उनके लिए भी बेनामी गाड़ियां खरीद रखी हैं। इन्हें पेट्रोल डीजल के दामों की कोई चिंता नहीं होती। जहाँ पार्टी का कार्यक्रम होता है वहीँ अपनी गाड़ी में चार साथियों को बैठाकर निकल पड़ते हैं। 



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